Mahadev Vani Gyan<br /><br />यदि तुम मुझे एक बेलपत्र पे बुलाते तो मैं अवश्य चला आता किन्तु तुम्हारे अहंकार के समक्ष बेलपत्र का कभी कोई महत्व ही नहीं था स्वर्णा की चमक तुम्हारी भक्ति को अंधा करती रही सच्ची भक्ति कभी भी व्यक्तिगत लाभ नहीं देखती वह तो केवल समाज का संसार का कल्याण देखती है।
